ज़माने की फ़सीलों को गिरा कर कभी देखेंगे ख़ुद को आज़मा कर मिरे दिल पर भी नाज़िल हो सकीनत मिरे मुर्शिद मिरे हक़ में दुआ कर तुम्हारी राह को रौशन किया है चराग़-ए-जान को मैं ने जला कर किसी दिन हम तुम्हारी ख़ाक-दाँ को चले जाएँगे इक ठोकर लगा कर तुम्हारा रास्ता हमवार कर दूँ मैं अपनी ज़ात का पत्थर हटा कर फ़लक के पार मुझ को देखना है सितारों से भरी चादर हटा कर अकेले बैठ के रोते रहे हम तुम्हारी याद में दुनिया भुला कर खुली आँखों में सपने देखती हूँ ख़ुद अपनी नींद का पंछी उड़ा कर