गो शम्अ' हूँ प महफ़िल-ए-जानाँ से दूर हूँ मैं अंदलीब हूँ प गुलिस्ताँ से दूर हूँ बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-रसीदा बनाया है इश्क़ ने मैं मौसम-ए-बहार में बुस्ताँ से दूर हूँ ऐ यार जुस्तुजू में तिरी सूरत-ए-ग़ुबार सर-गश्ता हूँ प गर्दिश-ए-दौराँ से दूर हूँ परवाना-वार गो कि जलाया है इश्क़ ने लेकिन चराग़-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ से दूर हूँ घुलता है दिल कि रह-रव-ए-उल्फ़त के वास्ते मैं ख़िज़्र हूँ प चश्मा-ए-हैवाँ से दूर हूँ कहता है ये पुकार के ख़ून-ए-शहीद-ए-नाज़ क़ातिल मैं तेरे गोशा-ए-दामाँ से दूर हूँ बंदा हूँ इश्क़ का मिरा मज़हब न पूछिए आज़ाद हो के गबरू मुसलमाँ से दूर हूँ मौज-ए-नसीम-ए-सुब्ह सताती है क्या मुझे मैं बू-ए-गुल की तरह गुलिस्ताँ से दूर हूँ कहता है उस की ज़ुल्फ़ में फँस कर ये मुर्ग़-ए-दिल क़ैदी तो हूँ 'जमीला' प ज़िंदाँ से दूर हूँ