मकीं हूँ और हुदूद-ए-मकाँ नहीं मा'लूम सुनाने बैठ गया दास्ताँ नहीं मा'लूम दिल-ए-हज़ीं को करम की उमीद करने दे अभी उसे तिरी मजबूरियाँ नहीं मा'लूम गुज़र रही है बस इक सोज़-ओ-कर्ब पैहम में कहाँ जला था मिरा आशियाँ नहीं मा'लूम सुकूँ से मुंतज़िर-ए-इम्तियाज़ है अब तक मिरी जबीं को तिरा आस्ताँ नहीं मा'लूम किसी को उन का पता क्या बताएँ ऐ 'आली' हमें तो आप ही अपना निशाँ नहीं मा'लूम