ज़मीं बनाई नए ज़ाविए बनाने पड़े कहीं पे क़ौस कहीं दाएरे बनाने पड़े कहीं थी रौशनी मतलूब और कहीं रौनक़ कहीं चराग़ कहीं क़ुमक़ुमे बनाने पड़े वो इक सफ़र जो हमें ज़िंदगी की शक्ल मिला उस इक सफ़र के कई मरहले बनाने पड़े फ़राग़तों में यहाँ और कुछ न बन पाया सितम बनाने पड़े मसअले बनाने पड़े नई हवाओं से लड़ने के वास्ते 'अज़बर' हमें चराग़ नए तौर के बनाने पड़े