ज़मीं बिछा के अलग आसमाँ बनाऊँ कोई ज़माँ मकाँ से परे अब जहाँ बनाऊँ कोई तमाम उम्र चले मेरे साथ तंहाई ग़रज़ ही क्या है मुझे कारवाँ बनाऊँ कोई किसी ख़ुशी को नहीं है अगर सबात यहाँ मैं सोचता हूँ कि ग़म जावेदाँ बनाऊँ कोई ये दश्त-ए-दिल कि जहाँ रेत उड़ती है शब ओ रोज़ तिरे लिए यहीं मौज-ए-रवाँ बनाऊँ कोई जो ऐसी वहशत-ए-जाँ है सर-ए-यक़ीन-ओ-सबात सो क्यूँ न वहम तराशूँ गुमाँ बनाऊँ कोई ठहरना कब है मुझे रेग-ज़ार-ए-दुनिया में सो क्या पड़ी है यहाँ आस्ताँ बनाऊँ कोई