ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा ये कैसा बोझ हमारे बदन पे आन गिरा बहुत संभाल के रख बे-सबात लम्हों को ज़रा जो सनकी हवा रेत का मकान गिरा इस आईने ही में लोगों ने ख़ुद को पहचाना भला हुआ कि मैं चेहरों के दरमियान गिरा रफ़ीक़-ए-सम्त-ए-सफ़र होगी जो हवा होगी ये सोच कर न सफ़ीने का बादबान गिरा मैं अपने अहद की ये ताज़गी कहाँ ले जाऊँ इक एक लफ़्ज़ क़लम से लहूलुहान गिरा क़रीब ओ दूर कोई शोला-ए-नवा भी नहीं ये किन अंधेरों में हाथों से शम्अ-दान गिरा 'फ़ज़ा' को तोड़ तो फेंका हवाओं ने लेकिन ये फूल अपनी ही शाख़ों के दरमियान गिरा