ज़मीन दिन-रात जल रही है तभी तो शो'ले उगल रही है कलाम करते हैं लोग ख़ुद से भड़ास दिल की निकल रही है अभी से क्या फ़ैसला करूँ मैं अभी तो दुनिया बदल रही है क़दम बढ़ाने का है नतीजा कि बर्फ़ अब कुछ पिघल रही है वहाँ तो मौसम है बारिशों का नदी यहाँ क्यूँ उबल रही है तुम अपना शोशा उठाए रक्खो मिरी तबीअ'त बहल रही है जगी है कोई तो आस मुझ में जो नींद ख़्वाबों में ढल रही है हटा जो मलबा तो मैं ने जाना अभी मिरी साँस चल रही है नफ़स नफ़स जी रहा हूँ 'राहत' गढ़ी गढ़ी मौत टल रही है