ज़मीन फ़र्श फ़लक साएबान लिखते हैं हम इस जहान को अपना मकान लिखते हैं हमारे अहद की तारीख़ मुनफ़रिद होगी लहू से अपने जिसे नौजवान लिखते हैं ये झूट है कि हक़ीक़त ये जब्र है कि ख़ुलूस जो बेवफ़ा हैं उन्हें मेहरबान लिखते हैं जो आने वाले ज़मानों से बा-ख़बर कर दे जबीन-ए-वक़्त पे वो दास्तान लिखते हैं समुंदरों के सितम की कहानियाँ 'जामी' दरीदा होते हुए बादबान लिखते हैं