ज़मीं कहीं है मिरी और आसमान कहीं भटक रहा हूँ ख़लाओं के दरमियान कहीं मिरा जुनूँ ही मिरा आख़िरी तआ'रुफ़ है मैं छोड़ आया हूँ अपना हर इक निशान कहीं इसी लिए मैं रिवायत से मुन्हरिफ़ न हुआ कि छोड़ दे न मुझे मेरा ख़ानदान कहीं लिखी गई है मिरी फ़र्द-ए-जुर्म और जगह लिए गए हैं गवाहान के बयान कहीं हवा-ए-तुंद से लड़ना मिरी जिबिल्लत है डुबो ही दे न मुझे ये मिरी उड़ान कहीं दिल-ए-हज़ीं का अजब हाल है मोहब्बत में कोई ग़ज़ब ही न ढा दे ये ना-तवान कहीं मैं दास्तान-ए-मोहब्बत इसे सुना आया कहीं का ज़िक्र था लेकिन किया बयान कहीं हवा-ए-शहर तुझे रास ही नहीं 'आसिफ़' मिसाल-ए-क़ैस तू सहरा में ख़ाक छान कहीं