ज़मीन को फूल फ़ज़ा को घटाएँ देता है मुझे फ़लक से वो अब तक सदाएँ देता है वही नवा-गर-ए-आलम ख़ुदा-ए-सौत-ओ-सदा वही हवा को फ़क़त साएँ साएँ देता है वही कहीं गुल-ए-नग़्मा कहीं गुल-ए-नौहा वही ग़मों को सरों की क़बाएँ देता है वो कोह-सार-ए-तहय्युर वो आब-शार-ए-निदा ख़मोशियों को भी क्या क्या निदाएँ देता है कोई तो रोए लिपट कर जवान लाशों से इसी लिए तो वो बेटों को माएँ देता है