ज़मीन रौंद चुके आसमान बाक़ी है अभी कहीं न कहीं ये जहान बाक़ी है ये दौर पैसे का है कुछ पता नहीं चलता कि कौन बिक गया किस की ज़बान बाक़ी है करें वो लाख जतन फिर भी कुछ नहीं होगा अभी ज़मीन पे उस का मकान बाक़ी है हमें मिटा दो मगर हक़ तो छुप नहीं सकता गला कटा है अभी तो ज़बान बाक़ी है ये कह के छोड़ दिया क्यों क़लम 'मुज़म्मिल' ने अभी तो और भी इक इम्तिहान बाक़ी है