जाना चाहो तो किस ने रोका है बिन मिरे जी सकोगे अच्छा है जब से उस ने कहा ख़ुदा-हाफ़िज़ तब से सब कुछ धुआँ धुआँ सा है आप से धड़कनों की रौनक़ है दिल मुझे आप जैसा लगता है तुम नहीं आए मिलने सावन में बारिशों का मिज़ाज फीका है ये तो बस दिल ही जानता है मिरा मैं ने किस दिल से तुझ को छोड़ा है कल हुआ था गुज़र यहाँ उस का शहर का पानी कल से मीठा है मुझ को दुनिया समझ में क्या आती एक ही शख़्स को जो सोचा है ख़ुद से बनती नहीं कभी 'इक़रा' जाने किस बात का ये झगड़ा है