जाने क्या सोच के उस ने सितम ईजाद किया ख़ुद भी बर्बाद हुआ मुझ को भी बर्बाद किया शम्अ' की तरह जले हम तिरी महफ़िल में मगर तू ने किस वक़्त हमें कौन सी शब याद किया जुम्बिश-ए-लब की इजाज़त है न इज़्न-ए-परवाज़ किस लिए तू ने मुझे क़ैद से आज़ाद किया शुक्र है तू ने मुझे दर्द के क़ाबिल समझा तेरी पैमाँ-शिकनी ने मिरा दिल शाद किया हाए उस शख़्स की ख़ातिर-शिकनी होती है जिस ने अपने को तिरी याद में बर्बाद किया अपनी बर्बादी पे नाज़ाँ भी हूँ हैरान भी हूँ शमएँ रौशन हुईं जब मैं ने तुझे याद किया तुझ को ये नाज़ कि तो ख़ालिक़-ए-नग़्मा है 'ख़याल' मुझ को ये फ़ख़्र कि तू ने मुझे बर्बाद किया