जंगल जुगनू बादल और मैं By Ghazal << यहाँ नहीं है वहाँ नहीं है... बिन तिरे इक कमी रही बरसों >> जंगल जुगनू बादल और मैं आँख में फैला काजल और मैं घर के ख़ाली सन्नाटे में दिल जैसा इक पागल और मैं उस की आँखें दरिया जैसी प्यासी रूह की छागल और मैं Share on: