जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ कब तलक ढूँडूँ कहाँ तक जादा-पैमाई करूँ गर कोई माने न हो वाँ सज्दा करने का मुझे आस्तान-ए-यार पर बरसों जबीं-साई करूँ बज़्म-ए-हस्ती में नहीं जुज़ बेकसी अपना रफ़ीक़ किस की ख़ातिर दोस्तो मैं महफ़िल-आराई करूँ ग़ारत-ए-दिल का जो करता है इरादा तर्क-ए-चश्म ग़म्ज़ा कहता है मैं ताराज शकेबाई करूँ ले गए जब तेरे दीवाने को ईसा ने कहा हर घड़ी मैं क्या इलाज-ए-मर्द-ए-सौदाई करूँ आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस' किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ