जंग-ए-हयात-ओ-मौत में क्या क्या नहीं हुआ गुज़रा है दर्द हद से पे चारा नहीं हुआ मैं ने सदा रखीं यहीं क़तरों सी फ़ितरतें मैं आज तक ग़ुरूर का दरिया नहीं हुआ क्या हादसा है ये भी कि रिश्ता तिरा मिरा बस बीज रह गया कभी पौदा नहीं हुआ जब इल्म ने जहान को तक़्सीम कर दिया अच्छा है ला-ख़िरद हूँ मैं दाना नहीं हुआ बीमारियों में आएगा पुर्सिश को रोज़ वो ये सोच कर 'सहाब' मैं अच्छा नहीं हुआ