जन्नत-ए-आबाद को वीरान करते जाएँगे गुल्सिताँ को पासबाँ शमशान करते जाएँगे ख़ाना-ए-जन्नत में आदम-ज़ाद का मस्कन न हो इस ग़रज़ से ख़ुद को वो शैतान करते जाएँगे तुम लगा कर आग गुलशन को भले कर दो तबाह हम तो आतिश-दान को गुल-दान करते जाएँगे मौत भी परछाई बन कर सामने जब आएगी रफ़्ता-रफ़्ता उस को अपनी जान करते जाएँगे परचम-ए-किरदार को अपने अगर कर लें बुलंद फिर तो हम इबलीस को इंसान करते जाएँगे उस घड़ी क्या ख़ूब मंज़र होगा सब के सामने ख़ुद को जब उन के लिए क़ुर्बान करते जाएँगे पुर-तजल्ली रुख़ पे उन के प्यासी नज़रें डाल कर हम तो अपनी आँख को हलकान करते जाएँगे कह के उन के हुस्न पर 'तसनीम' इक ताज़ा ग़ज़ल हूर और परियों को भी हैरान करते जाएँगे