जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला उस ने तो मुझे ख़ोशा-ए-गंदुम से निकाला रखा है मुझे आज तलक मौज में उस ने जिस लहर को गिर्दाब-ओ-तलातुम से निकाला ये भूल ही बैठा था ज़बाँ रखता हूँ मैं भी सो ख़ुद को तिरे सहर-ए-तकल्लुम से निकाला इस आदत-ए-ताख़ीर को इक उम्र है दरकार मुश्किल से तबीअ'त को तक़द्दुम से निकाला तदबीर को तक़दीर की ग़फ़लत से जगाया उम्मीद को भी तोहमत-ए-अंजुम से निकाला लगता था निकल ही नहीं पाऊँगा 'सुहैल' अब उस ने तो मुझे एक तबस्सुम से निकाला