जानने के लिए बेताब था अग़्यार का हाल उस ने पूछा न हमारे दिल-ए-बीमार का हाल शम्अ' भी जलने पे आमादा थी परवाना भी एक जैसा ही था मतलूब-ओ-तलबगार का हाल सोगवारी में हमारी थे बराबर के शरीक हम से मिलता था हमारे दर-ओ-दीवार का हाल सर्व-ए-तिमसाल है क़ामत में शबाहत में गुलाब क्या बयाँ सामने उस के करें गुलज़ार का हाल उस तरफ़ जो भी गया लौट के आया न कभी पूछिए किस से मक़ाम-ए-रसन-ओ-दार का हाल सब ने दिल थाम लिया देख के उस को 'आबिद' एक ही जैसा हुआ काफ़िर-ओ-दींदार का हाल