ज़रा से ग़म के लिए जान से गुज़र जाना मोहब्बतों में ज़रूरी नहीं है मर जाना कभी लिहाज़ न रखना किसी रिवायत का जो जी में आया उसे हम ने मो'तबर जाना वो रेत रेत फ़ज़ा में तिरी सदा का सराब वो बे-इरादा मिरा राह में ठहर जाना तमाम रात भटकना तिरे तआ'क़ुब में तिरे ख़याल की सब सीढ़ियाँ उतर जाना वो मन में चोर लिए फिरना तेरे साए का गली के मोड़ पे दीवार-ओ-दर से डर जाना 'शकील' गाँव के सब लोग सो गए होंगे अब इतनी रात को अच्छा नहीं है घर जाना