जराहतों की मलाहतों से मता-ए-दिल ख़ूब-रू करेंगे हम अपने दामन की धज्जियों से हज़ार दामाँ रफ़ू करेंगे शुआ'-ए-बर्क़-ओ-शरार ले कर जमाल-ए-रंग-ए-बहार ले कर निगार-ए-फ़र्दा को हुस्न देंगे बशर को हम सुर्ख़-रू करेंगे हमारा ग़म है वो बार-ए-हस्ती जिसे मलाएक उठा न पाएँ जहाँ पे छलके हमारे साग़र फ़रिश्ते उस जा वुज़ू करेंगे हमारे सीने के तेज़ शो'लों में पल रहे हैं हज़ार गुलशन जहाँ से गुज़रेंगे अपने नाले फ़ज़ा को वो मुश्क-बू करेंगे करेंगे क़ाबू में बिजलियों को रखेंगे पाबंद आंधियों को ख़िज़ाँ-गिरफ़्ता गुलों को इक दिन कमाल-ए-सद-रंग-ओ-बू करेंगे उरूज-ए-ज़ौक़-ए-नज़र से होंगी तजल्लियाँ कितनी आश्कारा हर एक ज़र्रे की क़ुव्वतों को निसार-ए-ज़ौक़-ए-नुमू करेंगे नशात-ओ-निकहत-ब-दोश शो'ले हमारे नग़्मों की आबरू बन रखेंगे शम-ए-हयात रौशन बहार की जुस्तुजू करेंगे