ज़ेर-ए-लब हम ने तिश्नगी कर ली इक समुंदर से दोस्ती कर ली राह तकते रहे हवाओं की फिर चराग़ों ने ख़ुद-कुशी कर ली वक़्त की चाल देखने के लिए हम ने रफ़्तार में कमी कर ली काम कोई न हो सका हम से हम ने हर फ़िक्र पेशगी कर ली हम ने हर ग़म छुपा लिया उस से ज़ब्त उस ने भी हर ख़ुशी कर ली रात-भर कोसते हैं दुनिया को सुब्ह होते ही दोस्ती कर ली