ज़ेर-ए-लब रहा नाला दर्द की दवा हो कर आह ने सुकूँ बख़्शा आह-ए-ना-रसा हो कर कर दिया तअ'य्युन से ज़ौक़-ए-इज्ज़ को आज़ाद नक़्श-ए-सज्दा ने मेरे तेरा नक़्श-ए-पा हो कर फ़र्त-ए-ग़म से बेहिस हूँ ग़म है ग़म न होने का दर्द कर दिया पैदा दर्द ने दवा हो कर हो चुके हैं सिल बाज़ू है न हिम्मत-ए-परवाज़ हम रिहा न हो पाए क़ैद से रहा हो कर हसरतें निकलती हैं मेरी जान जाती है दम लबों पे आता है हर्फ़-ए-मुद्दआ' हो कर ग़म पे ग़म मुझे दे कर ग़म से कर दिया महरूम क्या मिला ज़माने को सब्र-आज़मा हो कर रंज-ए-ऐश है बाक़ी अब न ऐश-ग़म 'ताबिश' कुछ ख़बर नहीं मुझ को रह गया हूँ क्या हो कर