ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का जाम-ए-मय बन गया इक मस्त-ए-ख़ुद-आराई का जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू रंग उड़ा लाए हैं ज़ालिम तिरी रानाई का मैं अभी उन को शनासा-ए-मोहब्बत कर दूँ काश मौक़ा तो मिले उन से शनासाई का भूल जाओगे यहाँ आ के तुम अपना आलम तुम ने देखा नहीं गोशा मिरी तन्हाई का तुम ने काबा तो बनाया है 'शरफ़' के दिल को हुक्म इस काबे में दो सब को जबीं-साई का