ज़ारों से डरिए फूलिए ज़र पर न ज़ोर पर कीजे निगाह हाल-ए-सुलैमान-ओ-मोर पर रोक अपने नफ़्स-ए-बद को कि हासिल है इख़्तियार बीमार पर हकीम को हाकिम को चोर पर हो आबरू बढ़ानी तो ये कह अब बहर को मिलता मुलाएमत से है किस ज़ोर-ओ-शोर पर इक उम्र से वज़ीफ़ा है साहब के नाम का नाख़ुन के ख़त हैं उँगलियों के पोर पोर पर नर्गिस के चश्म-ए-बद का है नाहक़ तुम्हें ख़याल इल्ज़ाम बद-निगाही का तोहमत है कोर पर पाँव अपना मेरे सीने पे रख दीजे एक बार इक लात भी तो मारिए हातिम की गोर पर उल्फ़त में दिल उमडते ही सर तन से उड़ गया सर-पोश जोश-ए-मय से न ठहरा मठोर पर कल तक जो शम-ए-महफ़िल-ए-ऐश-ओ-निशात थे जलता नहीं चराग़ है आज उन की गोर पर बुलबुल से हम ने लड़के किया सिर्र-ए-इश्क़ फ़ाश वाक़िफ़ हज़ार थे तो खुला अब करोर पर होते हो बाग़ में जो ग़ज़ल-ख़्वाँ तुम ऐ 'नसीम' ख़ंदा गुलों को आता है बुलबुल के शोर पर