ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल क़तरे के दिल में शोरिश-ए-तूफ़ाँ है आज कल सद-जल्वा बे-हिजाब ख़िरामाँ है आज कल सहमा हुआ सा गुम्बद गर्दां है आज कल आँसू में अक्स-ए-नक़्शा-ए-दौराँ है आज कल सिमटा हुआ सा आलम-ए-इम्काँ है आज कल बरहम मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ है आज कल किस मख़मसे में ग़ैरत-ए-यज़्दाँ है आज कल क़िस्मत की तीरगी की कहानी न पूछिए सुब्ह-ए-वतन भी शाम-ए-ग़रीबाँ है आज कल शीराज़ा-ए-उम्मीद शिकस्ता है इन दिनों जमइयत-ए-ख़याल परेशाँ है आज कल है इक निगाह-ए-मेहर की 'वासिफ़' को आरज़ू 'वासिफ़' का दिल शिकस्ता ओ वीराँ है आज कल