ज़रूरत बे-ज़रूरत बोलती है जहाँ दौलत हो दौलत बोलती है मोहब्बत कार-फ़रमा है हमारी तिरे चेहरे की रंगत बोलती है परखने का ज़रा सा तजरबा हो हर इक शय अपनी क़ीमत बोलती है ज़बाँ और आँख दोनों बंद रखना क़बीले से क़यादत बोलती है ये होता है जो हिम्मत हार बैठो कि बढ़-चढ़ कर मुसीबत बोलती है चमकना है तो मेरे साथ आ जा मुक़द्दर से ये मेहनत बोलती है तुम्हारा कब है जो कुछ है तुम्हारा बुज़ुर्गों की वसिय्यत बोलती है तुम्हारे पास सब है मैं नहीं हूँ सिसकती आदमियत बोलती है