ज़रूरी कब है कि हर काम इख़्तियारी करें अब अपने-आप को इतना न ख़ुद पे तारी करें ये इंजिमाद भी टूटेगा देखना इक दिन हम ए'तिमाद से पहले तो ख़ुद को जारी करें कोई भी खेल हो हैरान अब नहीं करता न जाने कौन से कर्तब नए मदारी करें बुलावा अर्श से आता है गर तो आता रहे जो ख़ाक-ज़ादे ही ठहरे तो ख़ाकसारी करें है तिश्नगी से तख़य्युल में ताक़त-ए-परवाज़ हुज़ूर मुझ को न सैराबियों से भारी करें कसीफ़ हम हैं सरासर मगर लतीफ़ है वो तो उस के वास्ते क्या ख़ुद को ख़ुद से आरी करें लगाम खींच के बैठे हैं बे-नियाज़ से हम समंद-ए-शौक़ की अब चाहे जो सवारी करें अता किया गया सहरा इस एक शर्त के साथ 'सुहैल' हम न कभी वहशतों से यारी करें