जसारत के रहते भी ख़ामोश होना है इस के सिवा क्या सितम-पोश होना परेशाँ नहीं तोहमतों से मैं लेकिन गिराँ है तुम्हारा ये ख़ामोश होना मोहब्बत में इल्ज़ाम लगने दो यारो वफ़ा में है जाएज़ ख़ता-पोश होना वही इक क़द-आवर जो तश्हीर में था पुर-असरार है उस का रू-पोश होना मिरी चाहतों को हवा दे गया है उन आँखों का वादा-फ़रामोश होना पलक तक कभी एक क़तरा न पहुँचा है आँखों की क़िस्मत बला-नोश होना सितम है बला है क़यामत है गोया बिछड़ने से पहले हम-आग़ोश होना