जाता है यार सैर को गुलज़ार की तरफ़ मेरी निगाह है गुल-ए-रुख़्सार की तरफ़ होती है मेरे सामने तस्वीर यार की जब देखता हूँ मैं दर-ओ-दीवार की तरफ़ या-रब हो ख़ैर आज कि कुछ देखता है वो मेरी तरफ़ कभी कभी तलवार की तरफ़ करता है क़त्ल आशिक़-ए-मिस्कीं को बज़्म में दुज़्दीदा देखना तिरा अग़्यार की तरफ़ हसरत है ये मरें भी जो क़ैद-ए-क़फ़स में हम सय्याद फेंक दे हमें गुलज़ार की तरफ़ चाक-ए-क़फ़स से देख तू ऐ अंदलीब-ए-ज़ार कुछ लग रही है आग सी गुलज़ार की तरफ़