जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे सिखा रहे हैं वो गोया चलन वफ़ा के मुझे रखा न हम को कहीं का तिरी मोहब्बत ने वो कह रहे हैं अदू से सुना सुना के मुझे तमीज़-ए-इश्क़-ओ-हवस पेशतर न थी उन को वो और हो गए मग़रूर आज़मा के मुझे शब-ए-विसाल अदाएँ भी हैं जफ़ाएँ भी दिखाए जाते हैं अंदाज़ किस बला के मुझे जो सैर देखनी मंज़ूर है तुम्हें 'बेख़ुद' भिड़ा दो हज़रत-ए-ज़ाहिद से मय पिला के मुझे