जाते ही हो गर ख़्वाह-नख़वाह फ़बिहा बेहतर बिस्मिल्लाह यक शब देखी जिन ने वो ज़ुल्फ़ लाखों देखे रोज़-ए-सियाह इतनी तो मत हो जल्द नसीम हम भी चमन तक हैं हम-राह दुश्मन रहवें बादा बग़ैर ता है ख़िर्क़ा और कुलाह कौंदे है दिल पर बर्क़ सी आज पेश-ए-नज़र है किस की निगाह व'अदा कर के रात का तुम ख़ूब ही आए वाह जी वाह 'क़ाएम' से कोई हो है ख़फ़ा बंदा, ख़ादिम, दौलत-ख़्वाह