कभी जब मुद्दतों के बा'द उस का सामना होगा सिवाए पास आदाब-ए-तकल्लुफ़ और क्या होगा यहाँ वो कौन है जो इंतिख़ाब-ए-ग़म पे क़ादिर हो जो मिल जाए वही ग़म दोस्तों का मुद्दआ' होगा नवेद-ए-सर-ख़ुशी जब आएगी उस वक़्त तक शायद हमें ज़हर-ए-ग़म-ए-हस्ती गवारा हो चुका होगा सलीब-ए-वक़्त पर मैं ने पुकारा था मोहब्बत को मिरी आवाज़ जिस ने भी सुनी होगी हँसा होगा अभी इक शोर-ए-हा-ओ-हू सुना है सारबानों ने वो पागल क़ाफ़िले की ज़िद में पीछे रह गया होगा हमारे शौक़ के आसूदा-ओ-ख़ुश-हाल होने तक तुम्हारे आरिज़-ओ-गेसू का सौदा हो चुका होगा नवाएँ निकहतें आसूदा चेहरे दिल-नशीं रिश्ते मगर इक शख़्स इस माहौल में क्या सोचता होगा हँसी आती है मुझ को मस्लहत के इन तक़ाज़ों पर कि अब इक अजनबी बन कर उसे पहचानना होगा दलीलों से दवा का काम लेना सख़्त मुश्किल है मगर इस ग़म की ख़ातिर ये हुनर भी सीखना होगा वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा है निस्फ़-ए-शब वो दीवाना अभी तक घर नहीं आया किसी से चाँदनी रातों का क़िस्सा छिड़ गया होगा सबा शिकवा है मुझ को उन दरीचों से दरीचों से दरीचों में तो दीमक के सिवा अब और क्या होगा