जवाँ था दिल न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पहले वो थे क्या मेहरबाँ सारा जहाँ था मेहरबाँ पहले वो मीर-ए-कारवाँ भी इक-न-इक दिन हो के रहते हैं जिन्हों ने मुद्दतों छानी है ख़ाक-ए-कारवाँ पहले ख़ुदी जागी उठे पर्दे उजागर हो गईं राहें नज़र कोताह थी तारीक था सारा जहाँ पहले वही बर्क़-ए-तजल्ली शम्अ' है मेरे शबिस्ताँ की न ला सकती थी जिस की ताब शाख़-ए-आशियाँ पहले हूँ अब भी पा-ब-गिल ताहम बहुत परवाज़ की मैं ने वो अब मेरी ज़मीं है था जो मेरा आसमाँ पहले निहाँ थीं दर-ब-दर की ठोकरों में अज़्मतें 'जामी' न था इस दर्जा आली तेरा अंदाज़-ए-बयाँ पहले