झंकार का रिश्ता तो है ज़ंजीर से साईं क्यों लोग परेशाँ हुए ता'बीर से साईं कुछ लोग अभी शहर में ऐसे भी हैं ख़ुश-पोश जो आग लगा देते हैं तक़रीर से साईं हक़ बोलने का हौसला अब हम में नहीं है निस्बत तो निकलती रही शब्बीर से साईं तदबीर पे मौक़ूफ़ है दुनिया की हुकूमत हम लोग उलझते रहे तक़दीर से साईं रहने दो अभी आइना-ख़ाने में कोई अक्स कुछ दिल तो बहल जाता है तस्वीर से साईं पहले ही बहुत देर हुई आने में उन के अब जान निकल जाएगी ताख़ीर से साईं तदबीर कुछ ऐसी करो उल्फ़त के निगहबाँ बिछड़े न कोई राँझा किसी हीर से साईं