झील में चाँद मुस्कुराता है ये मुझे कौन याद आता है वो मिलाता है जब नज़र से नज़र बर्फ़ में आग सी लगाता है जब से वो रूठ सा गया मुझ से मेरी आँखों में मुस्कुराता है आज-कल देख कर मिरी जानिब वो नए गीत गुनगुनाता है कोई छूता है जब बदन मेरा वक़्त नश्शे में डूब जाता है दिल से होती है दूर हर कुल्फ़त जब वो मेरे क़रीब आता है अच्छी लगती हूँ मैं उसे शायद रब्त मुझ से जो वो बढ़ाता है और खिलती है हाथ में मेहंदी मुहर-ए-बोसा जो वो लगाता हे