झिलमिलाते हुए आँसू भी अजब होते हैं शाम-ए-फ़ुर्क़त के ये जुगनू भी अजब होते हैं ये अदा हुस्न की हम क्यूँ नज़र-अंदाज़ करें उस के बिखरे हुए गेसू भी अजब होते हैं क़त्ल हो कोई तो काँप उठती है सारी दुनिया दर्द-ए-इंसाँ के ये पहलू भी अजब होते हैं किस को गीत अपने सुनाते हैं वहाँ क्या कहिए नग़्मा-ख़्वानान-ए-लब-ए-जू भी अजब होते हैं इस ख़राबी से तो मामूर है सारा आलम ये फ़ासादात-ए-मन-ओ-तू भी अजब होते हैं वलवले दिल के न मालूम किधर ले जाएँ कश्ती-ए-दिल के ये चप्पू भी अजब होते हैं भाइयों के सितम ओ जौर को क्या तुम से कहूँ 'रम्ज़' ये क़ुव्वत-ए-बाज़ू भी अजब होते हैं