झुका हुआ है जो मुझ पर वजूद मेरा है ख़ुद अपने ग़ार का पत्थर वजूद मेरा है ये चाप, तीरगी, नीचे को जा रहा ज़ीना इसी सुरंग के अंदर वजूद मेरा है नहीं है इस में किसी की शिराकत-नफ़्सी ये बात तय है सरासर वजूद मेरा है मुशाबह दोनों हैं फिर भी रुख़-ए-तमन्ना से तिरे वजूद से बढ़ कर वजूद मेरा है ये हद्द-ए-ख़ीरगी जिस पर है जल्वा-आरा तू बस इस से अगले क़दम पर वजूद मेरा है