झुमके दिखा के तूर को जिन ने जला दिया आई क़यामत उन ने जो पर्दा उठा दिया उस फ़ित्ने को जगा के पशेमाँ हुई नसीम क्या क्या अज़ीज़ लोगों को उन ने सुला दिया अब भी दिमाग़-ए-रफ़्ता हमारा है अर्श पर गो आसमाँ ने ख़ाक में हम को मिला दिया जानी न क़दर उस गुहर शब चराग़ की दिल रेज़ा-ए-ख़ज़फ़ की तरह मैं उठा दिया तक़्सीर जान देने में हम ने कभू न की जब तेग़ वो बुलंद हुई सर झुका दिया गर्मी चराग़ की सी नहीं वो मिज़ाज में अब दिल फ़सुर्दगी से हूँ जैसे बुझा दिया वो आग हो रहा है ख़ुदा जाने ग़ैर ने मेरी तरफ़ से उस के तईं क्या लगा दिया इतना कहा था फ़र्श तिरी रह के हम हों काश सो तू ने मार मार के आ कर बिछा दिया अब घटते घटते जान में ताक़त नहीं रही टक लग चली सबा कि दिया सा बढ़ा दिया तंगी लगा है करने दम अपना भी हर घड़ी कुढ़ने ने दिल के जी को हमारे खपा दिया की चश्म तू ने बाज़ कि खोला दर-ए-सितम किस मुद्दई' ख़ल्क़ ने तुझ को जगा दिया क्या क्या ज़ियान 'मीर' ने खींचे हैं इश्क़ में दिल हाथ से दिया है जुदा सर जुदा दिया