झूट कहूँ तो दिल तय्यार नहीं होता सच से लेकिन बेड़ा पार नहीं होता आप नफ़अ' में ख़ुश हैं हम घाटे में ख़ुश रिश्तों का हम से बेवपार नहीं होता राम की शबरी जंगल में तो रहती है बेरों पर उस का अधिकार नहीं होता सब केवल अपनी कमज़ोरी जीते हैं रिश्ता तो कोई बीमार नहीं होता सुनना सहना चुप रहना फिर हँसना भी ख़ुद पे इतना अत्याचार नहीं होता ख़ुद से डरना कश्ती पे भी शक करना अब ऐसे तो दरिया पार नहीं होता ये सच है वो हर हफ़्ते ही आता है सब की क़िस्मत में इतवार नहीं होता सीधे सच्चे अच्छे भी हैं लोग बहुत कैसे लिख दूँ दो दो चार नहीं होता