जी रहे हैं आफ़ियत में तो हुनर ख़्वाबों का है अब भी लगता है कि ये सारा सफ़र ख़्वाबों का है जी लगा रक्खा है यूँ ता'बीर के औहाम से ज़िंदगी क्या है मियाँ बस एक घर ख़्वाबों का है रात चलती रहती है और जलता रहता है चराग़ एक बुझता है तो फिर नक़्श-ए-दिगर ख़्वाबों का है रंग बाज़ार-ए-ख़िरद का और ये मेरा जुनूँ इक सितारा गुम्बद-ए-अफ़्लाक पर ख़्वाबों का है रात का दरिया और उस में एक तूफ़ान-ए-मुहीब जागना है देर तक ये भी असर ख़्वाबों का है वर्ना कट जाते हैं रोज़ ओ शब ज़माने की तरह जो भी थोड़ा या बहुत समझो तो डर ख़्वाबों का है