जिगर-ए-सोख़्ता हैं और दिल-ए-बिरयाँ हैं हम शोले की तरह सदा दीदा-ए-गिर्यां हैं हम मुत्तसिल लख़्त-ए-जिगर करते हैं आँखों से सदा आह किस आशिक़-ए-ग़म-दीदा की मिज़्गाँ हैं हम कभी हँसते हैं कभी रोते हैं जलते हैं कभी गुल हैं शबनम हैं कि या आतिश-ए-सोज़ाँ हैं हम हम में ही आलम-ए-अकबर हुए गो जुर्म-ए-सग़ीर मज़हर-ए-जल्वा-ए-हक़ हज़रत-ए-इंसाँ हैं हम दहर पुर-शोर है हाथों से हमारे ऐ आह आफ़रीनश में मगर नाला-ओ-अफ़्ग़ाँ हैं हम फ़िक्र-ए-जमइय्यत-ए-दिल हम को कहाँ आह 'हसन' ख़ातिर-आशुफ़्ता-ए-गेसू-ए-परेशाँ हैं हम