जिन के क़ब्ज़े में पल नहीं होते उन के हिस्से में कल नहीं होते फेंक दे हाथ से ये तलवारें मसअले ऐसे हल नहीं होते सोच कर थक चुका हर एक ग़रीब झोपड़े क्यों महल नहीं होते ज़हर होता है उस के सीने में जिस के माथे पे बल नहीं होते ठोकरों से वफ़ा ज़रूरी है रास्ते ये सरल नहीं होते