जीना क्या है पिछ्ला क़र्ज़ उतार रहा हूँ मैं तो उस की बाक़ी उम्र गुज़ार रहा हूँ आ जाएगा चाक पे चलना और सँभलना अभी तो गिल से अपना-आप उतार रहा हूँ कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में ख़ुद ही अपने रस्ते की दीवार रहा हूँ खुल जा मुझ पर हर्फ़-ए-तिलिस्म कि तेरी तरह से एक ज़माना मैं भी पुर-असरार रहा हूँ तुझ को मनाना इतना गर आसान नहीं है मैं भी दिल की पहली बाज़ी हार रहा हूँ