जिन्हें रास आ गए हैं ये सहर-नुमा अँधेरे ये तलाश-ए-सुब्ह-ए-नौ में कभी हम-सफ़र थे मेरे थीं जो क़त्ल-गाहें उन की हैं वही क़याम-गाहें थे जो रहज़नों के मस्कन हैं वो रहबरों के डेरे मैं जहान-ए-बे-दिली में कहाँ ले के जाऊँ दिल को मिरे दिल की घात में हैं यहाँ चार-सू लुटेरे ऐ शबों के पासबानों मैं ये तुम से पूछता हूँ जिन्हें पूजते रहे हो वो कहाँ गए सवेरे अरे मैं तो बे-नवा हूँ जो कभी न बिक सकेगा अरे तुम सुनार हो कर यहाँ बन गए कसीरे