जिस दिन से मिरी तुम से शनासाई हुई है उस दिन से मिरी और भी रुस्वाई हुई है तुम ने ही नज़र भर के नहीं देखा है मुझ को ऐसे में भला ख़ाक पज़ीराई हुई है क़िस्सा जो नया पास कोई है तो सुनाओ ये बात तो सौ बार की दोहराई हुई है चाहूँ भी तो मैं तोड़ नहीं पाऊँगी इस को रस्मों की ये ज़ंजीर जो पहनाई हुई है तू ने भी उड़ाई है हसीं ज़िंदगी मेरी तू भी तो मिरे ग़म की तमाशाई हुई है सच पूछो तो बदनाम हुए नाम की ख़ातिर शोहरत से ज़ियादा मिरी रुस्वाई हुई है रहने दें करम हम पे कि ये जान हमारी हमदर्दियों से आप की घबराई हुई है तुम फिर से उठा लाए हो दुनिया को कहाँ से ये तो मिरी सौ बार की ठुकराई हुई है