जिस जगह भी मिला घना साया हम ने कुछ देर को सुकूँ पाया हम नवेद-ए-सहर में ग़लताँ थे ज़ुल्मत-ए-शब ने आ के चौंकाया हम मुक़द्दर हैं धूप का यारो हम पे हँसता है किस लिए साया हो चले थे दयार-ए-ग़ैर के हम तेरी यादों ने दाम फैलाया हम घनी छाँव से निकल भागे जब भी सूरज उरूज पर आया