जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे हम किसी की आरज़ू में क्या से क्या होने लगे बेकसी ने बे-ज़बानी को ज़बाँ क्या बख़्श दी जो न कह सकते थे अश्कों से अदा होने लगे हम ज़माने की सुख़न-फ़हमी का शिकवा क्या करें जब ज़रा सी बात पर तुम भी ख़फ़ा होने लगे रंग-ए-महफ़िल देख कर दुनिया ने नज़रें फेर लीं आश्ना जितने भी थे ना-आश्ना होने लगे हर क़दम पर मंज़िलें कुछ दूर यूँ होती गईं राज़-हा-ए-ज़िंदगानी हम पे वा होने लगे सर-बुरीदा ख़स्ता-सामाँ दिल-शिकस्ता जाँ-ब-लब आशिक़ी में सुर्ख़-रू नाम-ए-ख़ुदा होने लगे आगही ने जब दिखाई राह-ए-इरफ़ान-ए-हबीब बुत थे जितने दिल में सब क़िबला-नुमा होने लगे आशिक़ी की ख़ैर हो 'सरवर' कि अब इस शहर में वक़्त वो आया है बंदे भी ख़ुदा होने लगे