जिस की ख़ातिर सजाई महफ़िल है क्यों रसाई उसी की मुश्किल है ज़िंदगी क्या है मैं बताता हूँ एक मजमूआ'-ए-मसाइल है उस को भी तो सज़ा मिले कोई जो मिरी ख़्वाहिशों का क़ातिल है पहले वो मुझ पे जाँ छिड़कता था अब मिरे दुश्मनों में शामिल है दस्त-ए-क़ातिल भला न क्यों लर्ज़ें तीर का रुख़ जो सू-ए-बिस्मिल है रहती दुनिया तलक ये कर्ब-ओ-बला हक़्क़-ओ-बातिल में हद्द-ए-फ़ासिल है होने वाला है कुछ बुरा शायद आज-कल मुज़्तरिब मिरा दिल है बाप बोला अदा करूँ कैसे इस क़दर पानी गैस का बिल है वो फ़सील-ए-अना गिरानी है जो हमारे मियान हाइल है एक दिन ग़म तो एक रोज़ ख़ुशी बस यही ज़िंदगी का हासिल है आज के दौर में जिसे देखो मक़्सद-ए-ज़िंदगी से ग़ाफ़िल है कैसे खाते हो शौक़ से 'नूरी' ख़ाली फ़िलफ़िल से ये फ़लाफ़िल है