जिस को चाहो तुम उस को भर दो माह को नुक़रा मेहर को ज़र दो पीर-ए-मुग़ाँ से अर्ज़ ये कर दो दक्खिन बख़्शो अगर साग़र दो आह ये दोनों आफ़त-ए-जाँ हैं नाज़-ओ-अदा ला'नत बर हर दो जी जलता है आह के झोंको शम-ए-मोहब्बत को गुल कर दो क़तरा-फ़िशानी क्या ऐ आँखो ऐसे बरसो जल-थल भर दो बुलबुलो सय्याद आज ख़फ़ा है हल्क़ छुरी के नीचे धर दो जान उन आँखों से न बचेगी ये है इधर तन्हा वो उधर दो दम की आमद-ओ-शुद क्या कहिए ज़ोफ़ की राह से हैं ये सफ़र दो अपना गला ख़ुद काटते हैं हम दम लो छुरी की तले बे-दर्दो जान-ओ-माल फ़िदा करने में फ़िक्र-ओ-तरद्दुद ऐ ना-मर्दो अर्ज़ ये है नक़्काश-ए-अज़ल से हुब के नक़्श में यार को घर दो दौलत-ए-दिल तुम तो हाज़िर है ख़त्त-ए-एज़ार तमस्सुक कर दो शुक्र-गुज़ार ब-हर-सूरत हैं ज़हर हमें दो या शक्कर दो आँखों में है मवाद-ए-गिरया 'बहर' इन फोड़ों को नश्तर दो